A REVIEW OF रंगीला बाबा का खेल

A Review Of रंगीला बाबा का खेल

A Review Of रंगीला बाबा का खेल

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मंच पर होने वाला अभिनय भर नहीं, बल्कि एक website सांस्कृतिक यात्रा है नाटिका

नादिर शाह घाघ था और घाट-घाट का पानी पिए हुए था उसने मौक़े पर वो चाल चली जिसे नहले पर दहला कहा जाता है.

इमेज कैप्शन, नादिर शाह के हमले के बाद मोहम्मद शाह रंगीला ज़्यादातर सफ़ेद कपड़े ही पहनते थे

क्रोधरस का स्थायी भाव धीरे-धीरे करुण रस में तब्दील हो जाता है. दशरथ की एंट्री तो शृंगार रस के साथ होती है, लेकिन पल भर में इस शृंगार को वियोग का गीत छिन्न-भिन्न कर देता है.

शाहजहां के बाद पहली बार दिल्ली में मुग़ल चित्रकारों का दूसरा दौर शुरू हुआ.

उन्हीं शाह हातिम के शागिर्द मिर्ज़ा रफ़ी सौदा हैं, जिनसे बेहतर क़सीदा निगार उर्दू आज तक पैदा नहीं कर सकी. सौदा के ही समकालीन मीर तक़ी मीर की ग़ज़ल का मुक़ाबला आज तक नहीं मिल सका.

एक तरफ़ तो यहां ग्यारहवीं शरीफ़ सारी दिल्ली में बड़ी धूम धाम से होती है, झाड़-फ़ानूस सजाए जाते हैं और रोशन महफ़िलें होती हैं.

उस पर भी बारिश की वजह से सोयाबीन का उत्पादन और गुणवत्ता प्रभावित हुई है. क्या सरकार किसानों का खराब हुआ सोयाबीन भी एमएसपी पर खरीदेगी.''

मंच सज्जा, वस्त्रसज्जा, रूप सज्जा सभी में कलाकारों का योगदान

बिलकुल ऐसे ही जैसे बरगद की शाख़ें काट दी जाएं तो उसके नीचे दूसरे पौधों को फलने फूलने का मौक़ा मिल जाता है. इसलिए मोहम्मद शाह रंगीला के दौर को उर्दू शायरी का सुनहरा दौर कहा जा सकता है.

अब किसी का कोई और परिचय था ही नहीं, वहां हर बाला सीता थी और हर बच्चा राम था. 'सिया राम मैं सब जग जानी...' को मंच पर एक नाटिका के जरिए जीवंत होते देखा जा सकता था.

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